भीषण सड़क हादसे में बुलेट सवार जिंदा जला, मची अफरा-तफरी
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत सड़क हादसे के पीड़ितों को एक घंटे के भीतर यानी गोल्डन ऑवर में कैशलेस इलाज उपलब्ध कराने के लिए 14 मार्च तक योजना बनाए।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अपने आदेश में मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 162 (2) का हवाला दिया। कहा, इसकी उपधारा 2(12-ए) के तहत गोल्डन ऑवर किसी हादसे में लगी चोट के बाद पहले एक घंटे का समय है, जिसमें वक्त पर उपचार मिलने से मौत टालने की सबसे अधिक उम्मीद होती है। पीठ ने कहा, जैसा परिभाषा से साफ है कि दर्दनाक चोट के बाद का एक घंटा सबसे अहम होता है। कई मामलों में, यदि समय रहते जरूरी इलाज नहीं दिया जाता, तो घायल व्यक्ति जान गंवा सकता है।
पीठ ने कहा, धारा 162 मौजूदा परिदृश्य में महत्वपूर्ण है, जब वाहन हादसों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में सरकार को नियम बनाने का निर्देश दिया जाता है। यह प्रक्रिया हर हाल में इसी 14 मार्च तक पूरी हो जानी चाहिए। इसके लिए अतिरिक्त वक्त नहीं दिया जाएगा। पीठ ने योजना की एक प्रति 21 मार्च तक रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया। साथ ही, सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय के अधिकारी का हलफनामा भी पेश करने को कहा, जिसमें इसके कार्यान्वयन की प्रक्रिया बतानी होगी।
अधिकतम डेढ़ लाख रुपये देने के केंद्र के प्रस्ताव पर चिंता
आवेदक के वकील ने केंद्र के अवधारणा नोट की सामग्री पर कई चिंताएं जाहिर कीं। उन्होंने बताया, योजना के तहत अधिकतम डेढ़ लाख रुपये के भुगतान का प्रावधान है। योजना के तहत केवल सात दिन तक ही उपचार दिया जाएगा। पीठ ने कहा, हमें लगता है कि योजना बनाते समय इन दो चिंताओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए। योजना ऐसी होनी चाहिए जो तत्काल इलाज देकर जीवन बचाने के मकसद को पूरा करे।
गडकरी ने दी थी जानकारी
केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक दिन पहले यानी मंगलवार को परिवहन विकास परिषद की दो दिनी कार्यशाला में बताया था कि दुर्घटना में घायल हुए लोगों को सात दिन तक और अधिकतम डेढ़ लाख रुपये तक कैशलेस इलाज की सुविधा दी जाएगी। यह भी कहा था कि देशभर में यह योजना मार्च तक लागू कर दी जाएगी। हालांकि, अब कोर्ट के निर्देश के बाद सरकार को इस पर पुनर्विचार करना होगा।
संविधान में मिला जीवन का अधिकार
पीठ ने कहा, गोल्डन ऑवर में कैशलेस उपचार मुहैया कराने की योजना बनाने के लिए धारा 162 के प्रावधान का मकसद संविधान के अनुच्छेद 21 की गारंटी जीवन का अधिकार बनाए रखना और उसकी रक्षा करना है। यह योजना बनाना केंद्र सरकार का वैधानिक दायित्व है। शीर्ष अदालत ने कहा, उप-धारा (2) के तहत योजना बनाने के लिए केंद्र के पास उचित से अधिक समय था। फिर भी योजना अब तक लागू नहीं हुई। योजना को अधिनियम के तहत विभिन्न बीमा कंपनियों की ओर से क्रियान्वित किया जाना है। अदालत ने मामले पर विचार के लिए 24 मार्च की तारीख तय की।