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January 14, 2025 5:27 pm

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इस बार 144 साल बाद बना है ऐसा संयोग की धरती ही नहीं आसमान में भी होगा कुंभ स्नान…

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नई दिल्ली:– प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले का महत्व बहुत विशेष है। यह एक पूर्ण कुंभ है, जो हर 12 साल में एक बार लगता है। पिछला पूर्ण कुंभ 2013 में हुआ था। इसके बाद 2019 में अर्धकुंभ का आयोजन किया गया था। इस बार के कुंभ में बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। अनुमान है कि सिर्फ संगम में ही 10 करोड़ लोग स्नान करेंगे। सबसे खास बात यह है कि 144 साल बाद ऐसा संयोग बना है, जब धरती पर मनुष्य ही नहीं बल्कि आसमान में देवता भी कुंभ स्नान करेंगे। आइए, जानते हैं कुंभ स्नान का महत्व।

कुंभ पुराण में लिखा है महाकुंभ का रहस्य
हर 12 साल में पूर्ण कुंभ लगता है। यह इसलिए होता है क्योंकि हिंदू मान्यता के अनुसार देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के 12 साल के बराबर होते हैं जबकि महाकुंभ हर 144 सालों बाद लगता है। कूर्म पुराण के अनुसार भी कुंभ होते हैं जिनमें से चार का आयोजन धरती पर होता है शेष आठ का देवलोक में होता है।; इसी मान्यता के अनुसार प्रत्येक 144 वर्ष बाद प्रयागराज में महाकुम्भ का आयोजन होता है, जिसका महत्व अन्य कुंभों से कहीं ज्यादा है।

धरती ही नहीं, आसमान में भी देवता करेंगे कुंभ स्नान
कूर्म पुराण के अनुसार, अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच बारह दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ था। देवताओं के ये बारह दिन इंसानों के बारह सालों के बराबर होते हैं। इस युद्ध में देवताओं की विजय हुई थी और अधर्म का नाश हुआ था, इसलिए देवताओं ने युद्ध के बाद देवलोक में ही स्नान किया था इसीलिए इस पौराणिक मान्यता अनुसार कुंभ मेला हर बारह साल में लगता है। साथ ही कूर्म पुराण में इस बात का उल्लेख भी किया गया है जैसे धरती पर गंगा पवित्र नदी है। उसी तरह देवलोक में भी कई पवित्र नदियां हैं, जिनमें केवल देवता ही स्नान कर सकते हैं। जब धरती पर महाकुंभ का आयोजन होता है, तो देवलोक के द्वार खुलते हैं और सभी देवतागण देवलोक में ही कुंभ स्नान करते हैं।

भगवान शिव माता पार्वती के साथ धरती पर करते हैं विचरण
शिव पुराण की कहानी के अनुसार माघ पूर्णिमा पर भगवान शिव माता पार्वती और अन्य कैलाशवासियों के साथ धरती पर वेश बदलकर कुंभ घूमने आते हैं। इस दौरान भगवान शिव प्रयागराज, वाराणसी आदि प्राचीन शहरों में घूमकर प्रकृति का आनंद लेते हैं और अपने भक्तों की परीक्षा भी लेते हैं।

Faizan Ashraf
Author: Faizan Ashraf

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