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January 4, 2025 12:27 pm

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रायगढ़ लोकसभा सीट पर 1998 से कांग्रेस ने हर बार बदले प्रत्याशी, अब भाजपा भी उसी रास्ते, 2024 में भाजपा ने राधेश्याम राठिया और कांग्रेस ने मेनका देवी सिंह को मौका दिया

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रायगढ़: लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों ने अपनी रणनीति पर अमल करना शुरू कर दिया है। महज कुछ दिनों का ही प्रचार बचा है। पिछले चुनावों के आंकड़े देखकर भी प्रत्याशी अपने कदम नाप रहे हैं। रायगढ़ सीट पर कांग्रेस और भाजपा में सीधी टक्कर है। पिछले चुनावों को देखें तो पाएंगे कि 1998 से कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी को दोबारा मौका नहीं दिया। भाजपा ने चार साल तक प्रत्याशी रिपीट किया। अब हर बार नया दावेदार उतार रही है। रायगढ़ लोकसभा सीट पर कांग्रेस और भाजपा में ही सीधी टक्कर रही है। 1998 के बाद से कांग्रेस इस सीट पर जीत नहीं सकी है। तब से लेकर अब तक पांच चुनाव हो चुके हैं।

इन पांचों मौकों पर कांग्रेस ने पांच अलग-अलग प्रत्याशी उतारे हैं। जबकि भाजपा ने चार बार एक ही प्रत्याशी पर दांव लगाया है। 1996 में कांग्रेस के पुष्पादेवी सिंह को भाजपा के नंदकुमार साय ने करीब दस हजार वोटों से हराया था। इसके बाद कांग्रेस ने 1998 में प्रत्याशी बदलकर अजीत जोगी को मौका दिया। रायगढ़ सीट पर जोगी जी जीते भी। उन्होंने नंदकुमार साय को हराया था। इसके बाद अल्पमत की सरकार गिरने के कारण 1999 में फिर से चुनाव हुए। इस बार भाजपा ने विष्णुदेव साय को पहली बार मैदान में उतारा। उधर कांग्रेस ने फिर से पुष्पादेवी सिंह को ही आजमाया।

पहली बार में की वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने तकरीबन छह हजार वोटों से जीत दर्ज की। इसके बाद भाजपा ने 2004, 2009 और 2014 में विष्णुदेव साय पर ही भरोसा दिखाया। जबकि कांग्रेस तब से लेकर अब तक लोकसभा क्षेत्र के योग्य प्रत्याशी तलाश कर रही है। कांग्रेस ने 2004 में रामपुकार सिंह, 2009 में हृदयराम राठिया, 14 में आरती सिंह और 2019 में लालजीत सिंह राठिया को अवसर दिया। इस बार कांग्रेस ने मेनका देवी सिंह को मौका दिया है। भाजपा ने भी 2019 में गोमती साय के बाद 2024 में राधेश्याम राठिया को मौका दिया है।

2014 में था सबसे ज्यादा अंतर

बीते सात चुनाव देखें तो रायगढ़ लोकसभा सीट पर केवल एक बार एक लाख वोटों से ज्यादा अंतर आया है। 1996 से 1999 के बीच तीन चुनावों में जीत का अंतर दस हजार से कम ही रहा। इसके बाद 2004 में करीब 74 हजार, 2009 में करीब 55 हजार, 2014 में दो लाख और 2019 में 66 हजार वोटों से भाजपा ने जीत का श्रृंगार किया है। 2014 में जनता ने किसी भी हाल में सत्ता परिवर्तन की जिद कर ली थी इसीलिए जीत का अंतर 2.16 लाख वोटों से भी अधिक रहा। इसके बाद 2019 में यह घट गया था। 

SOURc- KELO PRAVAH

Anash Raza
Author: Anash Raza

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