अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम को भव्य बनाने के लिए आरएसएस-भाजपा-विहिप ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। हर राज्य के हर जिले से लेकर मंडल और बूथ स्तर तक कार्यक्रम कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बनाने की हर संभव कोशिश की जा रही है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा राम मंदिर निर्माण को 2024 के लोकसभा चुनाव में अपना प्रमुख चुनावी एजेंडा बनाएगी। यानी 2024 की लड़ाई में विपक्ष का मुकाबला ‘राम’ के मुद्दे से होगा। क्या विपक्ष इसका मुकाबला कर पाएगा?
माना जा रहा था कि राम मंदिर का मुद्दा अब पुराना पड़ चुका है और अब भाजपा इसका कोई राजनीतिक लाभ नहीं ले सकेगी। इसके पीछे एक तर्क यह भी था कि हिंदुत्व और राम मंदिर मुद्दे के कारण जिन मतदाताओं को प्रभावित होना था, वे पहले ही प्रभावित हो चुके हैं और अब भाजपा को ही वोट कर रहे हैं। ऐसे में संभावना थी कि राम मंदिर के नाम पर भाजपा से नए मतदाता नहीं जुड़ेंगे और यह उसके लिए बहुत लाभदायक नहीं होगा।
पहली बार वोट करने वाले 15 करोड़ युवाओं पर असर
एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि पहली बार वोट करने जा रहे नए मतदाताओं में राम मंदिर मुद्दे का आकर्षण बना हुआ है और पहली बार वोट करने वाले युवाओं की एक बड़ी संख्या भाजपा को वोट कर सकती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में पहली बार वोट करने वाले युवाओं की संख्या लगभग आठ करोड़ थी, इस बार यह आंकड़ा आश्चर्यजनक रूप से 15 करोड़ के लगभग हो सकती है।
हर लोकसभा क्षेत्र में फैले इस विशाल मतदाता समूह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राम मंदिर, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे का व्यापक प्रभाव है और इनका एक बड़ा समूह भाजपा को वोट कर सकता है। यदि ऐसा होता है तो मोदी को केंद्र में हैट्रिक लगाने में कोई मुश्किल नहीं आने वाली है।
कमंडल के साथ मंडल भी
जातिगत जनगणना और ओबीसी आरक्षण विपक्ष का सबसे बड़ा चुनावी हथियार हो सकता है। भाजपा ने इस मुद्दे को बेअसर करने के लिए पहले ही योजना तैयार कर ली है। वह हर राज्य की सरकार, पार्टी संगठन में हर वर्ग के लोगों की भागीदारी सुनिश्चित कर रही है। हाल ही में बनी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों में ओबीसी, दलित, आदिवासी और ब्राह्मण सबको उचित भागीदारी देकर उन्हें साथ लेने की कोशिश की गई है।
अयोध्या के श्री राम इंटरनेशनल हवाई अड्डे का नाम बदलकर भगवान वाल्मीकि के नाम पर रख दिया गया। यह अचानक में लिया गया निर्णय नहीं है। इसके सहारे भाजपा दलित-महादलित और आदिवासी समूह को अपने साथ मजबूती के साथ जोड़ना चाहती है। जिस तरह से चुनावी राज्यों में इन समूहों के मतदाताओं का भाजपा को समर्थन मिला है, माना जा सकता है कि उसे इसका लाभ लोकसभा चुनाव में भी मिल सकता है।
ये मुश्किलें भी
इस साल मणिपुर के मुद्दे ने केंद्र सरकार को काफी परेशान किया। उसकी तमाम कोशिशों के बाद भी मणिपुर के हालात जल्द सामान्य नहीं हुए। केंद्र ने 370 के विवादित प्रावधानों को समाप्त कर दावा किया था कि इससे कश्मीर में आतंकवाद को समाप्त करने में बड़ी मदद मिली है। लेकिन साल का अंत आते-आते कश्मीर में आतंकवादियों ने एक बार फिर सिर उठाना शुरू कर दिया है। इन्हें मजबूती से कुचलना ही सरकार को राहत दे सकता है।
साल के अंत में सब कुछ ठीक करने की कोशिश
2022 के अंत में भाजपा को हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था तो 2023 के मध्य में कर्नाटक में उसे मुंह की खानी पड़ी। लेकिन 2023 का अंत आते-आते भाजपा ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव जीतकर 2024 को लेकर अपनी दावेदारी मजबूत कर दी।
यहां काम बाकी
भाजपा ने पार्टी संगठन से लेकर सरकार तक में बड़े चेहरों को किनारे लगाकर युवाओं पर दांव लगाया है। इससे शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया और बीएस येदियुरप्पा जैसे नेताओं की भूमिका कमजोर हुई है। यदि इन नेताओं ने पूरा साथ नहीं दिया तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को कुछ नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। साथ ही महंगाई और बेरोजगारी के मोर्चे पर अभी भी सरकार की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। यदि विपक्ष ने इन मुद्दों को मजबूती से उठाया तो लोकसभा चुनाव में सरकार की राहें आसान नहीं होंगी।