लापता बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की लाश तीन दिन बाद एक ठेकेदार के बाड़ा में बने सेप्टिक टैंक से मिली है. माना जा रहा है कि मुकेश की हत्या सड़क घोटाले को उजागर करने की वजह से ठेकेदार ने की है. यह बात महज इन दो लाइन में खत्म हो जाती है. लेकिन ऐसा नहीं है… दरअसल, यह पूरा वाकया एक के बाद एक कई सवालों को जन्म देता है, जिनके उत्तर शायद हमें कभी नहीं मिलेंगे.
अबूझमाड़ में पत्रकारिता को जीवंत बनाने वाले पत्रकार की मौत
कई बार होता है कि आप किताब का शीर्षक देखकर उसे पढ़ने के लिए ले लेते हो, यह बात खबरों पर भी लागू होती है, फिल्मों में भी और यूट्यूब चैनल पर लागू होती है. ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ था, सालों पहले मैने बस्तर में नक्सलियों से जुड़ा एक जीवंत वीडियो यूट्यूब पर देखा था. बेबाकी से बस्तरियों की बात दुनिया के साथ करने वाले चैनल का नाम भी याद रहा बस्तर जंक्शन. अब मुकेश चंद्राकर की मौत के बाद पता चला कि यह वही शख्स थे जो बस्तर जंक्शन चला रहे थे. नियती देखिए अबूझमाड़ में जीवंत पत्रकारिता को जिंदा रखने वाले मुकेश चंद्राकर की मौत नक्सलियों के हाथों नहीं बल्कि एक ठेकेदार के हाथों हुई है.
जिस घोटाले को उजागर किया, उस पर क्या हुआ…
बताया जा रहा है कि मुकेश की हत्या सड़क घोटाले को उजागर करने की वजह से हुई है. यह सड़क घोटाला बीते साल अगस्त के महीने में चर्चा में आया था. दरअसल बीजापुर जिले में गंगालूर से नेलसनार तक लगभग 20-30 किलोमीटर सड़क का निर्माण किया गया था, जिसकी कुल लागत 56 करोड़ रुपए की थी, लेकिन ठेकेदार ने अधिकारियों से साठ-गांठ कर 112 करोड़ की करवा ली, लेकिन सड़क पर जरूरी काम नहीं किए, जिसकी वजह से दो महीने में बनी यह सड़क पहली ही बारिश में कई जगहों पर बह गई. इस बात की जानकारी ऊपर तक दी गई थी, शिकायत पर जांच की बात कही गई थी, लेकिन निष्कर्ष अभी तक अधर में है…
क्या हुआ छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा कानून का
मुकेश की हत्या से एक बार फिर छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा कानून चर्चा में है. इसकी चर्चा पूर्ववर्ती कांग्रेस शासनकाल में हुई थी. इसमें पत्रकारों को प्रताड़ना, धमकी या हिंसा के विरुद्ध सुरक्षा देने के लिए समुचित कार्रवाई सुनिश्चित करने की बात कही गई थी. इस बात के लिए एक समिति का गठन किया जाना था, जिनमें एक पुलिस अधिकारी, जनसंपर्क विभाग का प्रमुख और तीन पत्रकारों को शामिल किया जाना था. इसके लिए बाकायदा वेबसाइट बनाया जाना था, जिसमें पत्रकारों से संबंधित सूचना, शिकायत और उस पर हुई कार्रवाई दर्ज करने की बात कही गई थी, लेकिन इस दिशा में अब तक कितनी प्रगति हुई, कुछ पता नहीं है…
कौन कर रहा है बस्तर को खोखला
नक्सलियों के प्रभुत्व की वजह से बस्तर अब तक पिछड़ा हुआ है. न तो शिक्षा का व्यापक प्रसार-प्रसार हुआ है, न ही स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का, मुकेश की हत्या ने साबित किया कि नक्सली ही नहीं है जो बस्तर को खोखला कर रहे हैं, नक्सलियों की आड़ में नेता-अधिकारी-ठेकेदार सब खोखला कर रहे हैं. नक्सली एक ऐसा पर्दा बन गए हैं, जिनके अंदर सारे उल्टे-सीधे काम किए जा रहे हैं. कामों की कहीं कोई मॉनिटरिंग नहीं है, कोई जवाबदेह नहीं है. खैर यह विकृति को व्यापक है, लेकिन बस्तर में इसका वीभत्स रूप देखने को मिल रहा है…
सियासी दांव-पेंच में न उलझ जाए बड़ा सवाल
मुकेश की हत्या में आरोपी धरे जा चुके हैं. लेकिन अब सियासत शुरू हो गई है. सारा दारोमदार पुलिस की जांच पर निर्भर है. लेकिन आरोप के साबित होने में लंबा वक्त लग सकता है. ऐसे में बड़ा सवाल यह भी है कि कहीं यह पूरा वाकया झीरम घाटी की तरह न होकर रह जाए, जिसमें मरने वाले तो मर गए, लेकिन सालों बाद भी मामला कोर्ट-कचहरी, आयोगों के बीच उलझा हुआ है. कम से कम ऐसी स्थिति तो इस मामले में नहीं होनी चाहिए…