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January 7, 2025 7:32 am

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क्रिसमस के जश्न में डूबा छत्तीसगढ़, एशिया के सबसे बड़े चर्च कुनकुरी में होगी स्पेशल प्रार्थना, हजारों की संख्या में जुटेंगे श्रद्धालु

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क्रिसमस की तैयारियां लगभग पूरी हो गई है. जशपुर के सभी चर्चों में विशेष प्रार्थना के साथ ही क्रिसमस की तैयारियां पूरी हो गई है. कुनकुरी महागिरजाघर में भी क्रिसमस को लेकर पूरी तैयारियां की जा चुकी है. देर रात विशेष प्रार्थना के बाद क्रिसमस पर्व मनाया गया

जशपुर जिले के कुनकुरी स्थित एशिया के दूसरे सबसे बड़े चर्च जिसे रोजरी की महारानी महागिरजाघर के नाम से जाना जाता है. इस महागिरजाघर में क्रिसमस को लेकर तैयारियां पूरी हो चुकी है. बच्चों से लेकर बड़ों में गजब का उत्साह देखने को मिल रहा है.

ज्ञात हो कि जशपुर जिले में ज्यादातर ईसाई समुदाय के लोग रहते हैं, और वे सभी क्रिसमस को लेकर काफी उत्साहित हैं. आपको बता दें कि कुनकुरी जशपुर गिनबहार जोगबाहला, तपकरा, सराईपानी मुसगुट्री, घूलेंग पत्थलगांव स्थित चर्च के में भी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं और आज शाम 7 बजे से ही मसीही समुदाय के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी वहां जुटने वाले हैं.

दरअसल जशपुर जिले के कुनकुरी स्थित रोजरी की महारानी महागिरजाघर जशपुर जिला ही नहीं बल्कि देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं एवं ईसाई धर्मावलंबियों के आस्था का बड़ा केंद्र है. इस चर्च के निर्माण की परिकल्पना बिशप स्तानिसलाश के द्वारा बेल्जियम के प्रसिद्ध वास्तुकार कार्डिनल जेएम कार्सि एसजे की मदद से की गई थी. इसे बनाने में करीब 17 साल लगे हैं. क्रिसमस के इस अवसर पर यहां पर प्रभु यीशु मसीह का चिंतन एवं उनके जन्म संस्कार में भाग लिया जाता है साथ ही इस दौरान क्रिसमस कैरोल का गायन वादन भी होता है. प्रभु यीशु मसीह के जन्म के बाद रात से ही सभी मसीही समुदाय के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी एक दूसरे को क्रिसमस की बधाई देते हैं.

आपको बता दें की 10 हजार से अधिक लोगों की एक साथ बैठक क्षमता वाले इस चर्च में क्रिसमस पर इससे कहीं अधिक लोगों की भीड़ जुटती रही है. क्रिसमस के दौरान यहां आयोजित समारोह में हर साल देश-विदेश से चार से पांच लाख लोग पहुंचते है.

1962 में रखी गई थी नींव
कुनकुरी चर्च की नींव 1962 मे रखी गई थी. उस समय कुनकुरी धर्मप्रांत के बिशप स्टानिसलास लकड़ा थे. इस विशालकाय भवन को एक ही बीम के सहारे खड़ा करने के लिए नींव को विशेष रूप से डिजाइन किया गया. सिर्फ इस काम में दो साल लग गए. नींव तैयार होने के बाद भवन का निर्माण 13 सालों में पूर्ण हुआ था.

महागिरजाघर में सात अंक का विशेष महत्व है. यहां सात छत और सात दरवाजे है. यह जीवन के सात संस्कारों का प्रतीक माना जाता है.

Anash Raza
Author: Anash Raza

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