रायपुर से बृजमोहन की ऐतिहासिक जीत, विकास को बड़े अंतर से हराया
विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव 2024 में भी बृजमोहन अग्रवाल ने रिकॉर्ड जीत का परचम लहराया है। उन्होंने रायपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी विकास उपाध्याय को हराया है। उन्होंने उपाध्याय को 5 लाख 75 हजार 285 वोटों से हराया है। बृजमोहन को कुल 10 लाख 50 हजार 351 वोट मिले हैं। वहीं विकास उपाध्याय को 4 लाख 75 हजार 66 वोट मिले हैं। इस तरह जीत का अंतर 5 लाख 75 हजार 285 रहा। कुल वोट का प्रतिशत 66.19 रहा। बृजमोहन अग्रवाल ने अपनी इस जीत का श्रेय पार्टी नेतृत्व के साथ ही पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं के अथक प्रयासों और रायपुर लोकसभा क्षेत्र की जनता को दिया है।
इस दौरान बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत केंद्रीय नेतृत्व ने उन पर विश्वास जताया और रायपुर लोकसभा क्षेत्र की जनता ने उस विश्वास पर मुहर लगाई है। इस जीत में भाजपा कार्यकर्ताओं का बड़ा योगदान रहा, जिन्होंने भीषण गर्मी में पूरी लगन के साथ काम किया और जनता के बीच में पार्टी की कार्ययोजना को बाखूबी रखने में सफल रहे। उन्होंने अपनी जीत के लिए क्षेत्र की जनता का आभार देते हुए कहा कि जनता ने शुरू से ही उनको स्नेह दिया है। इसका ही नतीजा है कि एक बार फिर से लोकसभा चुनाव में वो नया रिकॉर्ड बनाने में सफल रहे। अग्रवाल ने कहा कि यह पहला मौका है, जब उनको दिल्ली में रायपुर का नेतृत्व करने को मिल रहा है, वो जनता की उम्मीदों पर पूरी तरह खरा उतरने की कोशिश करेंगे। यह विकसित भारत और विकसित छत्तीसगढ़ का चुनाव था, जिसमें रायपुर समेत पूरे छत्तीसगढ़ की जनता ने मोदी और भाजपा पर विश्वास जताया है। आधिकारिक घोषणा होने से पहले उन्होंने अपने केंद्रीय चुनाव कार्यालय रायपुर में बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ केक काटकर जीत का जश्न मनाया। रायपुर सीट बीजेपी का अमेद्य किला है। बीजेपी यहां से लगातार जीतती रही है। रायपुर दक्षिण विधानसभा से 8 बार के विधायक बृजमोहन अग्रवाल को बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के रण में उतारा था। उनके सामने कांग्रेस के हारे प्रत्याशी विकास उपाध्याय चुनाव मैदान में थे।
रायपुर लोकसभा सीट- मतगणना अपडेट्स-
दसवे राउंड में अब तक का परिणाम
बीजेपी के बृजमोहन अग्रवाल को मिले कुल मत – 529642
कांग्रेस के विकास उपाध्याय को कुल मत – 249004
ग्यारहवे राउंड में अब तक का परिणाम
बृजमोहन अग्रवाल को मिले कुल मत – 586239
विकास उपाध्याय को मिले कुल मत – 275308
रायपुर लोकसभा 14वे राउंड का परिणाम
बृजमोहन अग्रवाल को मिले अब तक कुल मत -759130
विकास उपाध्याय को मिले कुल मत – 348960
बृजमोहन अग्रवाल 4,10,170 मतों से आगे
रायपुर लोकसभा 15वें राउंड का परिणाम
बृजमोहन अग्रवाल को मिले अब तक कुल मत -812660
विकास उपाध्याय को मिले कुल मत – 374000
बृजमोहन अग्रवाल 4,38,660 मतों से आगे
रायपुर लोकसभा 19वें राउंड का परिणाम
बृजमोहन अग्रवाल को मिले अब तक कुल मत -9,95,158
विकास उपाध्याय को मिले कुल मत – 4,48,555
रायपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी है और राजधानी होने से यह प्रदेश की वीआईपी सीट मानी जाती है। रायपुर लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ रहा है। यह पार्टी का अभेद्य किला है। भाजपा ने इस सीट पर 8 बार विजयश्री हासिल है। बीजेपी के दिग्गज नेता रमेश बैस सात बार इस सीट से सांसद रह चुके हैं।
विधानसभा सीटों का सियासी गणित
रायपुर लोकसभा सीट के तहत 9 विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें बलौदाबाजार, भाटापारा, धरसींवा, रायपुर शहर ग्रामीण, रायपुर शहर पश्चिम, रायपुर शहर उत्तर, रायपुर शहर दक्षिण, आरंग और अभनपुर विधानसभा सीट शामिल हैं। बात विधानसभा चुनाव 2023 की करें तो बीजेपी ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं कांग्रेस को सीट भाटापारा पर जीत मिली थी।
रायपुर लोकसभा सीट का दिलचस्प इतिहास रहा है। पिछले 20 साल से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है। वर्ष 1952 में यह सीट पहली बार अस्तित्व में आई थी। साल 1952 से 1971 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। बाकी के कुछ सालों को छोड़ दें तो यह सीट बीजेपी के कब्जे में रही है। करीब तीन दशक से इस सीट पर बीजेपी आसीन है। साल 1996 से 2019 तक रमेश बैस लगातार सांसद रहे। लोकसभा चुनाव 2024 में रमेश बैस ने कांग्रेस के सत्यनारायण शर्मा को शिकस्त दी थी। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सुनील कुमार सोनी ने जीत हासिल की। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद दुबे को हराया था।
नौ विधानसभा सीटों का गणित
विधानसभा – विधायक
बलौदाबाजार-टंकराम वर्मा (भाजपा)
भाटापारा- इंद्रकुमार साव (कांग्रेस)
धरसींवा-अनुज शर्मा (भाजपा)
रायपुर शहर पश्चिम-राजेश मूणत (भाजपा)
रायपुर शहर उत्तर-पुरंदर मिश्रा (भाजपा)
रायपुर शहर दक्षिण-बृजमोहन अग्रवाल (भाजपा)
रायपुर ग्रामीण-मोतीलाल साहू (भाजपा)
अभनपुर- इंद्रकुमार साहू (भाजपा)
आरंग-गुरु खुशवंत सिंह साहेब (भाजपा)
8 बार के विधायक हैं बृजमोहन अग्रवाल
बीजेपी ने रायपुर लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद सुनील कुमार सोनी का टिकट काटकर उनकी जगह 8 बार के विधायक और उच्च शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को दिया है। बृजमोहन रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट से लगातार विधायकी का चुनाव जीतते आ रहे हैं। हर बार मंत्री पद पर आसीन रहे हैं। उन्हें छत्तीसगढ़ बीजेपी की राजनीति में संकटमोचन कहा जाता है। बृजमोहन अग्रवाल अविभाजित मध्य प्रदेश में पटवा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इसके बाद वो रमन सरकार के तीनों कार्यकाल में मंत्री रहे। एक मई 1959 को रायपुर में जन्मे बृजमोहन अग्रवाल ने एलएलबी की डिग्री ली है। मध्य प्रदेश विधानसभा में उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक का पुरस्कार भी मिल चुका है। साल 1977 में बृजमोहन ने मात्र 16 साल की उम्र में ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सदस्यता ली थी। इसके बाद वर्ष 1981 और 1982 के दौरान वे छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे। 1984 में उन्होंने बीजेपी की सदस्यता ली। फिर 1988 से 1990 तक वे भाजयुमो के युवा मंत्री रहे। साल 1990 में पहली बार मध्य प्रदेश विधानसभा में विधायक के लिये निर्वाचित हुए। उस दौरान वो राज्य के सबसे युवा विधायक थे। इसके बाद वे लगातार साल 1993, 1998, 2003, 2008, 2013 2018 और 2023 में विधायक बने।
जातीय गणित
रायपुर लोकसभा क्षेत्र के तहत कुल नौ विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें बलौदाबाजार, भाटापारा, धरसीवां, रायपुर ग्रामीण, रायपुर शहर पश्चिम, रायपुर शहर दक्षिण, रायपुर शहर उत्तर, आरंग और अभनपुर विधानसभा सीट शामिल हैं। इन नौ सीटों पर बीजेपी विधायकों का कब्जा है। रायपुर लोकसभा सीट पर एससी और ओबीसी की बहुलता है। साहू, कुर्मी और सतनामी समाज के वोटर्स बड़े पैमाने पर हैं, जो चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इन तीनों जातियों के वोटर्स की संख्या 8 लाख से ज्यादा है। साल 2011 जनगणना के मुताबिक, इस सीट पर 3.6 लाख से अधिक अनुसूचित जाति (ST) के वोटर हैं जबकि अनुसूचित जनजाति (ST) वोटर्स की संख्या 1.28 लाख के करीब हैं। इस सीट पर मुस्लिम वोटर्स की संख्या 88 हजार के करीब हैं।
रायपुर लोकसभा चुनाव 2019 का रिजल्ट
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने इस सीट पर बहुत बड़ी जीत दर्ज की थी। बीजेपी उम्मीदवार सुनील सोनी ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद दुबे को 3 लाख 48 हजार 238 वोटों से हराया था। सुनील सोनी को 8 लाख 37 हजार 902 वोट मिले थे। वहीं प्रमोद दुबे ने 4 लाख 89 हजार 664 वोट हासिल किये थे। तीसरे नंबर पर बीएसपी के खिलेश कुमार साहू उर्फ खिलेश्वर थे। खिलेश्वर को मात्र 10,597 हजार वोट मिले थे। इस सीट पर कई निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में थे।
रायपुर लोकसभा चुनाव 2014 का परिणाम
लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी प्रत्याशी रमेश बैस ने 6,54,922 वोटों से जीत हासिल की थी। उन्होंने वरिष्ठ कांग्रेस नेता सत्यनारायण शर्मा को 4,83,276-38 से हराया था। बैस को 52.36 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं शर्मा को 38.64 प्रतिशत वोट मिले थे।
रायपुर लोकसभा चुनाव 2009 का रिजल्ट
लोकसभा चुनाव 2009 में बीजेपी उम्मीदवार रमेश बैस ने 3,64,943 वोट से जीत हासिल की थी। उन्हें 49.19 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल को 3,070, 42 वोट मिला था। उन्हें 41.39 प्रतिशत वोट मिले थे।
कब-कब किसने जीता रायपुर का चुनावी रण
1952-भूपेन्द्र नाथ मिश्रा- कांग्रेस
1957- बीरेंद्र बहादुर सिंह- कांग्रेस
1962-केशर कुमारी देवी -कांग्रेस
1967- लखन लाल गुप्ता -कांग्रेस
1971- विद्याचरण शुक्ल- कांग्रेस
1977- पुरूषोत्तम कौशिक – जनता पार्टी
1980- केयूर भूषण-कांग्रेस
1984- केयूर भूषण-कांग्रेस
1989- रमेश बैस- बीजेपी
1991- विद्याचरण शुक्ल-कांग्रेस
1996- रमेश बैस- बीजेपी
1998- रमेश बैस- बीजेपी
1999 -रमेश बैस- बीजेपी
2004 -रमेश बैस- बीजेपी
2009 -रमेश बैस- बीजेपी
2014 – रमेश बैस- बीजेपी
2019 -सुनील कुमार सोनी- बीजेपी
पहली बार सांसदी का चुनाव लड़े विकास उपाध्याय
विकास उपाध्याय पहली बार चुनावी रण में रहे। वर्ष 2018 में वो पहली बार रायपुर पश्चिम से विधायक बने। तीन बार के बीजेपी विधायक रहे राजेश मूणत को हराया था। विधानसभा चुनाव 2023 में राजेश मूणत ने उन्हें हराकर इस सीट पर कब्जा कर लिया। विकास उपाध्याय वर्ष 1998 में एनएसयूआई रायपुर जिले के ब्लॉक अध्यक्ष रहे। वर्ष 1999 में रायपुर जिले के एनएसयूआई जिला अध्यक्ष बने। साल 2004 में एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष बने। साल 2006 में एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव बने। वर्ष 2009 में युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव बनाए गये। साल 2010 में युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव बने। वर्ष 2013-2018 तक रायपुर शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष रहे।
रायगढ़ से राठिया ने कांग्रेस की मेनका को करीब ढाई लाख वोटों से दी शिकस्त
यगढ़ लोकसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी राधेश्याम राठिया ने जीत हासिल की है। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. मेनका देवी सिंह को हराया है। उन्होंने 2 लाख 40 हजार 391 वोटों से जीत हासिल की है। राठिया को कुल 8 लाख 82 हजार 275 वोट मिले हैं। वहीं शशि सिंह को 5 लाख 67 हजार 884 वोट मिले हैं। इस तरह जीत का अंतर 2 लाख 40 हजार 391 रहा। कुल वोट का प्रतिशत 55.63 रहा।
रायगढ़ लोकसभा सीट से पिछले तीन चुनावों में भाजपा का दबदबा रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने साल 2009 और 2014 के चुनाव में जीत हासिल कर चुके हैं। वहीं 2019 के चुनाव में बीजेपी की गोमती साय ने बाजी मारी थी। राधेश्याम राठिया कद्दावर आदिवासी नेता के रूप में जाने जाते हैं। राठिया ने साल 1995 से 2000 तक ग्राम पंचायत छर्राटांगर के निर्विरोध उपसरपंच रहे हैं। इसके बाद वर्ष 2000 से 2005 तक सदस्य- जिला पंचायत रायगढ़, वर्ष 2005 से 2010 तक अध्यक्ष- जनपद पंचायत घरघोडा, वर्ष 2010 से 2015 तक सदस्य- जिला पंचायत रायगढ़ और वर्ष 2015 से 2020 तक घरघोड़ा से निर्विरोध जनपद सदस्य रहे हैं। भाजपा संगठन में भी दायित्व निभा चुके हैं।
रायगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस ने डॉ. मेनका देवी सिंह को प्रत्याशी बनाकर चुनावी मैदान में उतारा है। राजा नरेशचंद्र की पांच बेटियों में मेनका देवी तीसरी बेटी हैं। उनकी बेटी रजनीगंधा 1967 में रायगढ़ से सांसद रहीं और दूसरी बेटी पुष्पा देवी सिंह ने साल 1980, 1984 और 1991 में रायगढ़ लोकसभा सीट जीतीं। मेनका देवी की दूसरी बहन कमला देवी 18 वर्षों तक विधायक रहीं और अविभाजित मध्य प्रदेश में 15 सालों तक मंत्री रहीं। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी 1998 में रायगढ़ सीट जीतने वाले आखिरी कांग्रेस उम्मीदवार थे। सारंगढ़ राजपरिवार के सदस्य लगभग 25 वर्षों तक चुनावी राजनीति से दूर रहने के बाद एक बार फिर रायगढ़ लोकसभा सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। सारंगढ़ में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली गोंड राजपरिवार की सदस्य डॉक्टर मेनका देवी सिंह को कांग्रेस ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित रायगढ़ लोकसभा सीट से मैदान में उतारा है। साल 2014 में कांग्रेस ने डॉक्टर मेनका देवी को टिकट दिया था, लेकिन बाद में उन्होंने उम्मीदवार बदल दिया। विष्णुदेव साय ने 2004, 2009 और 2014 में तीन बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है।
पिछले तीन चुनाव का सियासी गणित
रायगढ लोकसभा सीट पर 2009 में हुए आम चुनाव में बीजेपी से विष्णुदेव साय और कांग्रेस से हृदयराम राठिया चुनावी मैदान में उतरे थे। इस चुनाव में विष्णुदेव साय को 47.44 प्रतिशत वोट बैंक के साथ चार लाख 43 हजार 948 वोट मिले थे। साय साल 2009 के चुनाव में 55848 वोट से चुनाव जीत हासिल किए थे। 2014 के आम चुनाव में भी बीजेपी से विष्णुदेव साय को ही प्रत्याशी बनाकर चुनावी मैदान में उतारा गया था। जहां सामना कांग्रेस की आरती सिंह से हुआ। 2014 के चुनाव में भी विष्णु देव साय ने दो लाख 16 हज़ार 750 वोटों के साथ जीत हासिल किए थे। वहीं 2019 में भाजपा ने गोमती साय को अपना प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस ने लालजीत सिंह राठिया को मुकाबला के लिए चुनावी मैदान में उतारे। इस चुनाव में भी बीजेपी प्रत्याशी गोमती साय ने कांग्रेस प्रत्याशी को 66 हजार से ज्यादा वोटों के साथ हराया।
जानें इस चुनाव में विधानसभावार वोट प्रतिशत
धरमजयगढ़ – 84.61%
जशपुर – 75.44%
खरसिया – 83.54%
कुनकुरी – 77.20%
लैलूंगा – 84.26%
पत्थलगांव – 77.96%
रायगढ़ – 75.45%
सारंगढ़ – 74.66%
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कांकेर से बीजेपी के भोजराज नाग की फतह, बीरेश लगातार दूसरी बार हारे
छत्तीसगढ़ के कांकेर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग ने जीत हासिल की है। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी बीरेश ठाकुर को हराया है। तमाम रोमांच और विवाद के बीच भोजराज नाग विजयी घोषित किये गये। बेहद नजदीकी मुकाबले में कांग्रेस प्रत्याशी बीरेश ठाकुर को 1 हजार 884 मतों से मात दी। लगातार दूसरी बार बीरेश ठाकुर को हराया।
कांग्रेस ने पूर्व चुनाव में हारे बीरेश ठाकुर पर एक बार फिर भरोसा जताया था। उन्होंने अपनी राजनीतिक सफर की शुरुआत छात्र नेता के रूप में की थी। उनके दादा और पिता विधायक रहे हैं। ठाकुर 1989 से कांग्रेस के सक्रिय सदस्य हैं। 1995, 2000 और 2010 में जनपद सदस्य निर्वाचित हुए। इसके बाद जनपद अध्यक्ष बने। बीरेश ठाकुर का राजनीतिक कद बढ़ते गया और जिला पंचायत के सभापति बने। इसके बाद प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष बने। कांग्रेस ने साल 2019 को इसी सीट पर चुनाव लड़ाया था। लेकिन भाजपा प्रत्याशी मोहन मंडावी से छह हजार वोटों से हारे थे।
जानें भोजराज नाग की राजनीति सफर
कांकेर के अंतागढ़ थाना क्षेत्र से आने वाले भोजराज नाग 2014 में हुए अंतागढ़ विधानसभा उपचुनाव में भाजपा से जीत हासिल कर विधायक बने थे। वे अनुसूचित जनजाति सुरक्षा मंच के संयोजक हैं। पूर्व विधायक भोजराज नाग ने अपनी राजनीतिक सफर की शुरुआत साल 1992 में की थी। सबसे पहले अपने गांव हिमोड़ा के सरपंच बने। साल 2000 से 2005 तक जनपद पंचायत अंतागढ़ के अध्यक्ष रहे। 2009 से 2014 तक जिला पंचायत सदस्य भी रहे। वर्तमान समय में भोजराज भाजपा अंतागढ़ के मंडल अध्यक्ष हैं।
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने छत्तीसगढ़ के बस्तर के दोनों लोकसभा सीटों में हिंदुत्व के छवि वाले नेताओं पर अपना दाव खेला है। बस्तर लोकसभा सीट से महेश कश्यप और कांकेर लोकसभा सीट से भोजराज नाग को सांसद प्रत्याशी बनाया गया है। कांकेर लोकसभा सीट से प्रत्याशी भोजराज नाग अंतागढ़ के पूर्व विधायक रह चुके हैं और बस्तर में धर्मांतरण के विरोध में निकली गयी विशाल रैली और आंदोलन के मुख्य नेतृत्वकर्ता भी रह चुके हैं। पेशे से किसान और सरपंच का चुनाव जीतकर राजनीति में शुरुआत करने वाले भोजराज नाग को भाजपा ने टिकट दिया है। इससे पहले कांकेर लोकसभा सीट से भाजपा से ही सांसद मोहन मंडावी थे, लेकिन इस बार के चुनाव में भाजपा ने उनका टिकट काटते हुए भोजराज नाग को मौका दिया है।
26 साल से भाजपा का गढ़
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट को वजूद 1967 में मिला। इसे भाजपा का गढ़ माना जाता है। 1998 से यह सीट भाजपा के पास है। 1998 से 2009 तक सोहन पोटाई लगातार सांसद रहे। 2014 में भाजपा के विक्रम उसेंडी ने यहां से शानदार जीत दर्ज की। वहीं, 2019 में कांकेर से मोहन मंडावी सांसद बने। 2024 में भाजपा ने नया चेहरे पर भरोसा जताया है।
जानें इस चुनाव में विधानसभावार वोट प्रतिशत
अंतागढ़ – 74.99 प्रतिशत
भानुप्रतापपुर – 76.18 प्रतिशत
डौंडीलोहारा – 74.93 प्रतिशत
गुंडरदेही – 74.40 प्रतिशत
कांकेर – 76.95 प्रतिशत
केशकाल – 77.11 प्रतिशत
संजारी बालोद – 75.88 प्रतिशत
सिहावा – 79.93 प्रतिशत
इस बार भगवा रंग में रंगा बस्तर, बीजेपी के महेश कश्यप जीते, कवासी हारे
छत्तीसगढ़ की बस्तर लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप ने जीत हासिल की है। उन्होंने 55 हजार 245 वोटों से जीत हासिल की है। कश्यप को 4 लाख 58 हजार 398 वोट मिले हैं। वहीं पूर्व मंत्री कवासी लखमा को 4 लाख 3 हजार 153 वोट मिले हैं। इस तरह जीत का अंतर 55 हजार 245 रहा। कुल वोट का प्रतिशत 45.5 रहा।
बस्तर लोकसभा सीट छत्तीसगढ़ की महत्वपूर्ण सीटों में से एक मानी जाती है। वर्ष 1951 से पहले लोकसभा चुनाव से लेकर वर्ष 1996 तक यह कांग्रेस की परंपरागत सीट हुआ करती थी, लेकिन साल 1996 में पहली बार यहां के लोगों ने निर्दलीय प्रत्याशी को चुना। वर्ष 1998 से लेकर 2014 तक इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा। यह सीट अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित है।
यह सीट वर्ष 1952 में पहली बार अस्तित्व में आई थी। यहां से दीपक बैज कांग्रेस के मौजूदा सासंद हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद उन्होंने जीत दर्ज की थी। दीपक बैज विधानसभा चुनाव 2023 में चित्रकोट से चुनाव हार गए थे। बीजेपी ने इस बार कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा को टक्कर देने के लिए बस्तर से महेश कश्यप को चुनावी मैदान में उतारा है।
बीजेपी के वरिष्ठ नेता बलिराम कश्यप यहां से लगातार 4 बार (1998 से 2009) सांसद रहे। वर्ष 2011 और 2014 में बीजेपी के दिनेश कश्यप यहां से सांसद बने। इस सीट पर पिछले डेढ़ दशक तक कश्यप परिवार का दबदबा रहा। वर्ष 2014 में बीजेपी के दिनेश कश्यप ने यहां से जीत हासिल की थी। उन्होंने कांग्रेस के दीपक कुमार को हराया था।
पहली बार चुनाव लड़े महेश कश्यप
भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े। विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के सक्रिय सदस्य और इन संगठनों में विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। महेश कश्यप ने कक्षा दसवीं तक की पढ़ाई की है। जगदलपुर ब्लॉक के ग्राम कलचा के निवासी 48 वर्षीय महेश 1996 में बजरंग दल के जिला संयोजक बने थे।
बस्तर लोकसभा के तहत कुल 8 विधानसभा सीटें
कोंडागांव
नारायणपुर
बस्तर
जगदलपुर
चित्रकोट
दंतेवाड़ा
बीजापुर
कोंटा
बस्तर लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दीपक बैज ने बीजेपी के बैदूराम कश्यप को कड़ी टक्कर देते हुए हराया था। बैदूराम कश्यप को 38 हजार 982 हजार वोटों से हराया था। दीपक बैज को 4 लाख 2 हजार 527 वोट यानी 44 फीसदी वोट मिले थे जबकि बैदूराम कश्यप को 3 लाख 63 हजार 545 यानी 40 फीसदी वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर सीपीआई के रामू राम थे। रामू को महज 38 हजार 395 वोट मिले थे।
बस्तर लोकसभा चुनाव 2014 का परिणाम
वर्ष 2014 में हुए चुनाव में करीब 12 लाख 98083 मतदाता थे। BJP प्रत्याशी दिनेश कश्यप ने कुल 3 लाख 85 हजार 829 वोट हासिल कर बाजी मारी थी। उन्हें 50।11 प्रतिशत वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर कांग्रेस उम्मीदवार दीपक कर्मा (बंटी), को 2 लाख 61 हजार 470 वोट मिले थे। कुल वोटों का 33.96 प्रतिशत था। इस सीट पर जीत का अंतर 1 लाख 24 हजार 359 था।
बस्तर लोकसभा चुनाव 2009 का परिणाम
साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में 11 लाख 93 हजार 116 मतदाता थे। उस समय बीजेपी उम्मीदवार बलिराम कश्यप ने 2 लाख 49 हजार 373 वोट पाकर जीत दर्ज की थी। उन्हें कुल 44.16 प्रतिशत वोट मिले थे। दूसरे स्थान पर कांग्रेस उम्मीदवार शंकर सोढ़ी थे, जिन्हें 1 लाख 49 हजार 111 वोट मिले थे। कुल वोटों का 26.4 प्रतिशत था।
बस्तर लोकसभा सीट में कुल मतदाता
बस्तर लोकसभा सीट पर करीब 13 लाख 57 हजार 443 लाख वोटर्स हैं। इनमें से 6 लाख 53 हजार 620 लाख पुरुष वोटर्स हैं, जबकि 7 लाख 3 हजार 779 महिला मतदाता हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में 9 लाख 12 हजार 846 मतदाताओं ने मतदान किया था। मतलब यहां 70 फीसदी वोटिंग हुई थी।
चुनावी मुद्दे…
नक्सलवाद
कृषि और वनोपज
शहरी विकास
रोजगार
पलायन
आदिवासी, जंगल और जमीन
जातीय समीकरण
बस्तर की राजनीति में भतरा और गोंड समुदायों का प्रभाव रहा है। हल्बा और अन्य आदिवासी जातियों की मौजूदगी भी है, लेकिन मुख्य रूप से पूरी राजनीति भतरा आदिवासियों के इर्द गिर्द ही घूमती रहती है। बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर और इसके आसपास के इलाके में भतरा जनजाति का निवास है। भानपुरी के बलीराम कश्यप का परिवार भी इसी समुदाय से हैं। हालांकि आदिवासियों के बीच राजनीतिक विभाजन नहीं है पर चुनाव के दौरान समाज को साधना जरूरी हो जाता है। बस्तर में हल्बी, भतरी, गोंडी, दोरली, परजी, धुरवी आदि बोलियां बोली जाती हैं। बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और अबूझमाड़ चारों जगह की गोंडी में फर्क है। दोरली बीजापुर और सुकमा के उन इलाकों में बोली जाती है, जो आंध्र या तेलंगाना से सटे हैं। इन जातियों के साधने पर ही यहां से जीत संभव हो पाता है।
निर्दलीय मुचाकी कोसा का रिकॉर्ड बरकरार
बस्तर लोकसभा सीट पर अब तक की सबसे बड़ी जीत पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा की रही है। राजमहल समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी मुचाकी कोसा को वर्ष 1952 के चुनाव में कुल विधिमान्य मतों में से 83.05 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस के सुरती क्रिस्टैया को मात्र 16.95 प्रतिशत वोट मिले थे। मुचाकी कोसा को 1 लाख 77 हजार 588 मत और सुरती क्रिस्टा को 36 हजार 257 वोट मिले थे। मुचाकी ने 1 लाख 41 हजार 331 मत और 66.09 फीसद के भारी अंतर से जीत हासिल की थी। विधिमान्य मतों में एकतरफा रिकॉर्ड 83.05 मत आज तक कोई प्राप्त नहीं कर सका है।
बस्तर का इतिहास
आदिवासी बहुल बस्तर जिला छत्तीसगढ़ एक नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। करीब 70 प्रतिशत जनसंख्या जनजातीय समुदाय की है। इस समाज की एक बड़ी आबादी आज भी घने जंगलों में रहती है। ये समुदाय अपनी संस्कृति, कला, पर्व और सहज जीवन शैली के लिए प्रख्यात है। बस्तर को ‘छत्तीसगढ़ का कश्मीर’ भी कहा जाता है। बस्तर घने जंगलों, ऊंची पहाड़ियों, झरनों, गुफाओं से भरा हुआ है। अपनी मनमोहक खूबसूरती से यह सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। नक्सलवाद की वजह से बस्तर कई दशकों से सुर्खियों में रहा है। 14वीं सदी में यहां पर काकतीय वंश का राज था। इस क्षेत्र पर अंग्रेज कभी अपना राज स्थापित नहीं कर पाए। आजादी के पहले बस्तर राजघराने की राजधानी थी। शुरुआत के दो दशक तक बस्तर की राजनीति में राजमहल का प्रभाव रहा। बस्तर राजशाही वाला इलाका रहा है। महाराजा स्वर्गीय प्रवीरचंद भंजदेव के इशारे पर चुनाव में जीत-हार तय होती थी। उन्हें तब मां दंतेश्वरी के माटी पुजारी और आदिवासियों के भगवान के नाम से भी जाना जाता था। बस्तर लोकसभा सीट का मुख्यालय जगदलपुर है।
छह बार के विधायक हैं कवासी लखमा
छह बार विधायक कवासी लखमा सुकमा जिले के ग्राम नागारास के निवासी हैं। साल 1953 में जन्में लखमा साक्षर हैं। अविभाजित मध्य प्रदेश में पंच के चुनाव से राजनीति में कदम रखने वाले 71 वर्षीय लखमा किसान परिवार से हैं।
सरगुजा से बीजेपी प्रत्याशी चिंतामणि महाराज जीते, कांग्रेस को हराया
छत्तीसगढ़ की सरगुजा लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज ने जीत हासिल की है। उन्होंने 64 हजार 822 वोटों से जीत हासिल की है। महाराज को 7 लाख 13 हाजार 200 वोट मिले हैं। वहीं शशि सिंह को 6 लाख 48 हजार 378 वोट मिले हैं। इस तरह जीत का अंतर 64 हजार 822 रहा। कुल वोट का प्रतिशत 49.01 रहा।
जानें कौन हैं चिंतामणि महाराज
चिंतामणी महाराज छत्तीसगढ़ के संत गहिरा गुरु के बेटे हैं। सरगुजा संभाग में संत समाज के अनुयायी अंबिकापुर, लुंड्रा, सामरी, पत्थलगांव, जशपुर, कुनकुरी और बिलासपुर के रायगढ़, विधानसभा क्षेत्रों में हैं। प्रदेश भर में उनके समाज के अनुयायी हैं। ऐसे में बीजेपी में उनके प्रवेश करने से सरगुजा संभाग की 6 सीटों पर सीधा असर पड़ सकता है। बीजेपी यहां से आगे हो सकती है क्योंकि वर्तमान में संभाग की 14 की 14 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। उनके इस कदम से कांग्रेस की चिंता बढ़ गई है।
चिंतामणि महाराज लगभग 11 साल पहले बीजेपी में थे। भाजपा से उपेक्षित के आरोप पर उन्होंने 2008 में सामरी विधानसभा से ही निर्दलीय चुनाव लड़ा था पर हार गए थे। इसके बाद बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। साल 2013 में उन्हें कांग्रेस ने लुंड्रा से टिकट दिया था और वे विधायक बने। 2018 में दोबारा चिंतामणि महाराज को कांग्रेस ने सामरी से प्रत्याशी बनाया और वे दूसरी बार विधायक बने। अब फिर बीजेपी में उनकी घर वापसी हो गई है। बीजेपी में वापसी के बाद उन्हें सरगुजा लोकसभा सीट का प्रत्याशी बनाया गया है। चिंतामणी महाराज रमन सरकार के पहले कार्यकाल में 2004 से 2008 तक राज्य संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष रहे। वर्ष 2008 में बलरामपुर जिले के सामरी विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़े पर जीत नहीं पाए। साल 2013 में फिर से कांग्रेस के टिकट पर सामरी विधानसभा से चुनाव लड़े और पहली बार विधायक बने। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दोबारा उन पर भरोसा जताया। उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी सिद्धनाथ पैकरा को हराकर दूसरी बार विधायक बने। उन्हें कुल 180,620 वोट मिले थे। वहीं बीजेपी प्रत्याशी सिद्धनाथ पैकरा को 58697 वोट मिले थे।
जानें सरगुजा सीट का समीकरण
सरगुजा लोकसभा सीट आदिवासी बहुल इलाका है। साल 2019 के भारतीय जनता पार्टी की रेणुका सिंह ने जीत दर्ज की थी। रेणुका सिंह ने कांग्रेस पार्टी के खेलसाय सिंह को 1,57,873 वोटों से हराया था। रेणुका सिंह को जहां 6,63,711 वोट मिले थे। इससे पहले 2014 में यहां बीजेपी के कमलभान सिंह मराबी ने जीत दर्ज की थी। सरगुजा लोकसभा में 17 बार आम चुनाव हो चुके हैं, जिसमें 9 बार कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव जीता है। आठ बार बीजेपी और जनता पार्टी ने जीत हासिल की थी। बता दें कि राज्य की गठन के बाद चार बार बीजेपी ने परचम लहराया है। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नंद कुमार साय ने बाजी मारी। 2009 में मुरारी लाल सिंह, 2014 में कमलभान सिंह और 2019 में बीजेपी की रेणुका सिंह की जीत हुई। रेणुका सिंह केंद्रीय राज्य मंत्री रह चुकी हैं।
जानें इस चुनाव में विधानसभावार वोट प्रतिशत
अंबिकापुर – 75.20 %
भटगांव – 79.78 %
लूंड्रा – 84.04 %
प्रतापपुर – 80.98 %
प्रेमनगर – 78.71 %
रामानुजगंज – 80.40 %
सामरी – 81.57 %
सीतापुर – 79.71 %
कुल 79.89 %
जानें युवा नेत्री शशि सिंह को प्रत्याशी बनाने का राज
कांग्रेस पार्टी ने सरगुजा लोकसभा सीट से युवा नेत्री शशि सिंह को प्रत्याशी के रूप में चुना है। शशि सिंह को तेज तर्रार कांग्रेस नेत्री के रूप में जाना जाती है। इनका मुकाबला भाजपा के चिंतामणि के साथ रहा। वो गोंड जनजातीय समाज की उभरती हुई नेत्री हैं। शशि पूर्व मंत्री तुलेश्वर सिंह की पुत्री हैं। वर्तमान में वे सूरजपुर जिले के जनपद पंचायत सदस्य हैं। कांग्रेस प्रत्याशी शशि सिंह ने भारत जोड़ो यात्रा और भारत न्याय यात्रा के दौरान कई कार्यक्रमों में भाग लिया है। साथ ही उन्हें कई बार राहुल गांधी के साथ पदयात्रा में भी देखा गया है। अपने क्षेत्र में उन्होंने अच्छी पकड़ बनाई हुई है। यही वजह है कि कांग्रेस ने शशि सिंह को सरगुजा सीट से चुनावी मैदान में उतारा।
दुर्ग से विजय की ‘विजय’, राजेंद्र साहू को 4 लाख से ज्यादा वोटों से हराया
छत्तीसगढ़ की वीआईपी सीटों में से एक दुर्ग लोकसभा सीट पर विजय बघेल जीत गये हैं। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र साहू को हराया। उन्होंने 4 लाख 38 हजार 226 वोटों से जीत हासिल की है। विजय बघेल को 9 लाख 56 हजार 497 वोट मिले हैं। वहीं राजेंद्र साहू को 5 लाख 18 हजार 271 वोट मिले हैं। इस तरह जीत का अंतर 4 लाख 38 हजार 226 रहा। कुल वोट का प्रतिशत 62 रहा। विजय बघेल राज्य के पूर्व सीएम भूपेंद्र बघेल के भतीजे हैं। इस जिले में भिलाई स्टील प्लांट होने से यह क्षेत्र विशिष्ट स्थान रखता है। दुर्ग लोकसभा क्षेत्र में कुल 20 लाख 90 हजार 414 मतदाता हैं, जिनमें से 15,40,193 मतदाताओं ने ने वोटिंग की है।
इस सीट पर पहली बार वर्ष 1952 में कांग्रेस के वासुदेव एस किरोलीकर ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद साल 1957 में मोहनलाल बाकलीवाल, 1967 में विश्वनाथ तामस्कर, 1968 में चंदूलाल चंद्राकर, 1977 में जनता पार्टी के उम्मीदवार मोहन जैन ने विजयश्री हासिल की थी। साल 1989 में जनता दल के उम्मीदवार पुरुषोत्तम कौशिक ने जीत हासिल की, लेकिन 1991 में फिर से चंदूलाल चंद्राकर ने जीत दर्ज की। 1995 में चंदूलाल चंद्राकर के निधन के बाद 1996 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार ताराचंद साहू साहू साल 2004 तक जीतते रहे। उनके बागी होने पर साल 2009 में बीजेपी की सरोज पांडे ने विजय हासिल की। इसके बाद 2014 में कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2019 में मोदी लहर में बीजेपी के विजय बघेल ने जीत हासिल की।
दुर्ग लोकसभा क्षेत्र में कुल 9 विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें पाटन, दुर्ग ग्रामीण, दुर्ग शहर, भिलाई नगर, वैशाली नगर, अहिवारा , साजा, बेमेतरा और नवागढ़ विधानसभा क्षेत्र शामिल है। इन 9 सीटों में से 2 विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, जिसमें अहिवारा और नवागढ़ सीट शामिल है। पिछले विधानसभा चुनाव में 2 सीटों को छोड़कर शेष 7 सीटों में बीजेपी ने जीत हासिल की थी।पाटन से कांग्रेस के भूपेश बघेल और भिलाई से देवेंद्र यादव ने जीत हासिल की थी।
दुर्ग लोकसभा सामान्य सीट है, यहां अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं। साल 2000 में छत्तीसगढ़ बनने के बाद 2004 से 2019 तक यहां 4 बार वोटिंग हो चुकी है। यहां 3 बार भाजपा तो सिर्फ एक बार 2014 में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी।
जातीय समीकरण
दुर्ग कुर्मी, यादव और साहू समाज की बाहुल्यता वाला इलाका माना जाता है। ऐसे में टिकट को लेकर राजनीतिक दल जातिगत समीकरण बैठाने लगाने में रहते हैं। यहां साहू 30-35 प्रतिशत, कुर्मी 20-22 प्रतिशत और यादव 12-15 प्रतिशत की संख्या में हैं।
विजय बघेल का राजनीतिक सफर
विजय बघेल पाटन विधानसभा क्षेत्र से चार बार चुनाव लड़ चुके हैं। विजय बघेल साल 2019 में दुर्ग लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर सांसद बने थे। विजय बघेल ने अपनी राजनीति करियर की शुरुआत साल 2000 में की थी। 2000 में विजय बघेल भिलाई नगर परिषद का चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में जीता। उसके बाद साल 2003 में राष्ट्रवादी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े पर हार का सामना करना पड़ा। साल 2003 में चुनाव हारने के बाद विजय बघेल बीजेपी में शामिल हो गए। साल 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें पाटन विधानसभा सीट से उतारा। दूसरी ओर कांग्रेस की तरफ से भूपेश बघेल चुनाव मैदान में थे। इस चुनाव में विजय बघेल ने भूपेश बघेल करारी शिकस्त देते हुए हरा दिया। विजय बघेल पहली बार अपने चाचा भूपेश बघेल को चुनाव हराकर विधानसभा पहुंचे थे। विजय बघेल बीजेपी सरकार में संसदीय सचिव भी रह चुके हैं। साल 2013 के चुनाव में बीजेपी ने विजय पर एक बार फिर भरोसा जताते हुए पाटन विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया। इस बार भूपेश बघेल ने उन्हें हराकर बदला ले लिया। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में विजय बघेल को दुर्ग लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया था। दुर्ग लोकसभा क्षेत्र से विजय बघेल ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिमा चंद्राकर को तीन लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से मात दी थी।
राजेंद्र साहू का राजनीतिक सफर
कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र साहू पूर्व सीएम भूपेश बघेल के करीबी माने जाते हैं। 46 साल के राजेंद्र साहू पोस्ट ग्रेजुएट हैं। उनके पास 66 लाख 26 हजार की चल संपत्ति और 6 करोड़ 33 लाख की अचल संपत्ति है। राजेंद्र साहू राजनीति के चाणक्य वरिष्ठ नेता स्वर्गीय वासुदेव चंद्राकर के शिष्य रह चुके हैं। पूर्व सांसद स्वर्गीय ताराचंद साहू ने जब बीजेपी छोड़कर छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच बनाई, तो राजेंद्र साहू ने उनकी पार्टी ज्वॉइन की थी। कांग्रेस की यूथ विंग और दुर्ग जिले में सक्रिय कार्यकर्ता रह चुके राजेंद्र साहू ने क्षेत्रीय पार्टी स्वाभिमान मंच से दुर्ग विधायक और 2009 में दुर्ग नगर निगम के महापौर का चुनाव लड़ा था।
जब भूपेश बघेल साल 2017 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने तो राजेंद्र साहू की फिर कांग्रेस में वापसी हुई। 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए वे टिकट की दावेदारी कर रहे थे, लेकिन इसके पहले सहकारी बैंक में तिरपाल घोटाला उजागर होने के बाद तत्कालीन सहकारी बैंक अध्यक्ष को हटाकर राजेंद्र साहू को ये जिम्मेदारी दे दी गई। 14 साल पहले साल 2009 में छत्तीसगढ़िया बेरोजगारों की भर्ती की मांग को लेकर प्रदर्शन के वक्त उनके समेत 10 लोगों के खिलाफ सुपेला थाने में एफआईआर दर्ज हुआ था।
बड़े अंतर से हारे पूर्व सीएम बघेल, BJP के संतोष पांडेय ने दी शिकस्त
छत्तीसगढ़ में लोकसभा की कुल 11 सीटें हैं, जिनमें बीजेपी को 10 पर जीत मिली है। वहीं कांग्रेस को सिर्फ एक ही सीट यानी कोरबा से संतोष करना पड़ा। साल 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा को नौ और कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली थी, जिसमें कोरबा और बस्तर शामिल थी, लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस से ज्योत्सना चरणदास महंत ही अपनी साख बचाने में कामयाबी रहीं। कोरबा सीट से ज्योत्सना चरणदास महंत ने भाजपा की सरोज पांडेय को हराया है।
प्रदेश की सबसे हाई प्रोफाइल सीट राजनांदगांव से कांग्रेस प्रत्याशी और राज्य के पूर्व सीएम भूपेश बघेल को हार का सामना करना पड़ा। भूपेश बघेल को मौजूदा सांसद और भाजपा प्रत्याशी संतोष पांडेय ने शिकस्त दी है। उन्होंने 4 लाख 44 हजार 11 वोटों से जीत हासिल की है। संतोष पांडेय को कुल 7 लाख 12 हजार 57 वोट मिले हैं। वहीं भूपेश बघेल को 6 लाख 67 हजार 646 वोट मिले हैं। इस तरह जीत का अंतर 4 लाख 44 हजार 11 रहा। संतोष पांडेय के कुल वोट का प्रतिशत 49.25 और भूपेश का 46.18 रहा।
राजनांदगांव से प्रदेश के पूर्व सीएम और वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह विधायक चुने गए हैं, इस लिहाज से भी यह सीट खास हो जाती है। बीजेपी के संतोष पांडेय यहां से सांसद हैं। इतना ही नहीं बीजेपी ने यहां से लगातार 4 बार जीत हासिल की है। राजनांदगांव लोकसभा सीट में 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिसमें राजनांदगांव, खुज्जी, मोहला मानपुर, डोंगरगांव, खैरागढ़, डोंगरगढ़, कवर्धा और पंडरिया शामिल हैं।
पिछले चुनाव के परिणाम
राजनांदगांव लोकसभा सीट में हुए पिछले पांच चुनावों में बीजेपी ने यहां से जीत हासिल की है। हालांकि बीच में एक उपचुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस को जीत मिली थी। 1999 में इसी सीट से डॉ. रमन सिंह जीते थे। 2004 में प्रदीप गांधी को जीत हासिल हुई थी, फिर 2007 के उपचुनाव में कांग्रेस के देवव्रत सिंह ने जीत दर्ज की थी। 2009 में मधुसूदन यादव यहां से सांसद बने। फिर 2014 में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह यहां से सांसद बने। 2019 में बीजेपी ने संतोष पांडे को मौका दिया और वह सांसद बने।
गौरवशाली रहा है राजनांदगांव का इतिहास
राजनांदगांव का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। इसे छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी भी कहा जाता है यहां पर प्रसिद्ध राजवंशों जैसे सोमवंशी, कालचुरी बाद में मराठाओं द्वारा शासन किया गया था। पहले राजनांदगांव को नंदग्राम कहा जाता था। 1973 में राजनांदगांव को दुर्ग जिले से अलग करके नया जिला बनाया गया था फिर 1998 में इसके कुछ हिस्सें को अलग कर कबीरधाम जिला बना। खैरागढ़ में इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय है तो डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। यहीं पर बौद्ध धर्म के अलावा जैन धर्म का भी बड़ा धार्मिक स्थल भी है।
रूपकुमारी चौधरी ने महासमुंद में मारी बाजी, ताम्रध्वज साहू को हराया
महासमुंद लोकसभा क्षेत्र में मतगणना खत्म हो चुकी है। भाजपा प्रत्याशी रूपकुमारी चौधरी ने इस सीट से बाजी मारी है। चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी ताम्रध्वज साहू को हराकर अपनी जीत पक्की है। रूपकुमारी चौधरी ने पूर्व कैबिनट मंत्री ताम्रध्वज साहू को पटखनी दी है। भाजपा प्रत्याशी रूपकुमारी चौधरी सात लाख तीन हजार 659 वोट मिले। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी ताम्रध्वज साहू पांच लाख 58 हजार 203 मिला है। चौधरी ने एक लाख 45 हजार 456 वोटों से पूर्व मंत्री को हराया है। इस तरह जीत का अंतर एक लाख 45 .हजार 456 रहा। कुल वोट का प्रतिशत 53.06 रहा।
रूप कुमारी चौधरी का सियासी सफर
भाजपा ने महासमुंद लोकसभा सीट से रूपकुमारी चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा है। रूप कुमारी बीजेपी की सक्रिय नेता हैं। वे समाजसेविका, राजनीतिक रुचि और अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ बनाई हुई हैं। रूपकुमारी छत्तीसगढ़ विधानसभा की पूर्व सदस्य रह चुकी हैं। रूपकुमारी चौधरी महासमुंद के बसना विधानसभा क्षेत्र की निवासी हैं, जो साल 2013 से 2018 तक बसना से विधायक रही हैं। इसके साथ ही मई 2015 से दिसंबर 2018 तक संसदीय सचिव भी थीं। साल 2005 में रूप कुमारी चौधरी सराईपाली विधानसभा से पहली बार जिला पंचायत सदस्य बनी। इसके बाद बसना विधानसभा से दोबारा 2010 में जिला पंचायत सदस्य चुनी गईं। साल 2011 में महासमुंद जिला महामंत्री भाजपा महिला मोर्चा के पद भी संभाली। चौधरी आरएसएस से भी जुड़ी हुई हैं। संगठन में उनके अच्छी पकड़ है। नवंबर 2019 से अब तक महासमुंद जिलाध्यक्ष के पद पर हैं।
ताम्रध्वज साहू का सियासी सफर
ताम्रध्वज साहू सरपंच से लेकर विधायक और सांसद तक का सफर तय कर चुके हैं। वर्ष 1998 में पहली बार वह मध्यप्रदेश विधानसभा में कदम रखा। वर्ष 2000 में अजीत जोगी की सरकार में वो जल संसाधन, आयकट, ऊर्जा तथा शिक्षा (उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, स्कूल शिक्षा), जनशक्ति नियोजन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कृषि, पशुपालन, सहकारिता विभाग के मंत्री रहे। वर्ष 2014 में पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और मोदी लहर के बावजूद बीजेपी प्रत्याशी सरोज पांडेय को हराया था।
इसके बाद लोकसभा की राजभाषा समिति, कोयला एवं इस्पात संबंधी स्थायी समिति, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य बनाये गए। ओबीसी समाज के सीनियर लीडर ताम्रध्वज साहू वर्ष 2018 में भूपेश सरकार में गृहमंत्री, लोक निर्माण, जेल, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री रह चुके हैं। ताम्रध्वज साहू को रूपकुमारी चौधरी से हार का सामना करना पड़ा है।
महासमुंद लोकसभा सीट का सियासी समीकरण
महासमुंद लोकसभा सीट में दिग्गज नेताओं का कब्जा रहा है। इस सीट से कांग्रेस के कद्दावर नेता विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल और अजीत जोगी ने जीत हासिल किए हैं। बता दें कि महासमुंद लोकसभा सीट पर साल 1952 से अब तक कुल 19 चुनाव हुए हैं। इसमें 12 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है। वहीं साल 2009, 2014 और 2019 में भाजपा का कब्जा रहा है। महासमुंद से कांग्रेस के कद्दावर नेता विद्याचरण शुक्ल सात बार जीत हासिल कर केंद्र में वरिष्ठ मंत्री रहे। अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे श्यामाचरण शुक्ल भी एक बार महासमुंद से चुनाव जीत चुके हैं। साथ ही छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने साल 2004 में इस सीट से जीत हासिल किए थे। इसके बाद से यह सीट लगातार बीजेपी के हाथों में है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के चुन्नी लाल साहू ने कांग्रेस के धनेन्द्र साहू को 90 हजार 511 हजार मतों से हराया था। अब भाजपा ने नए चेहरे को मौका दिया है।
जानिए कहां कितने वोट से जीते प्रत्याशी
रायपुर लोकसभा – भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल 575285 वोटों से जीते
दुर्ग लोकसभा – भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल 438226 वोटों से जीते
सरगुजा लोकसभा – भाजपा प्रत्याशी चिंतामणी महाराज 64822 वोटों से जीते
राजनांदगांव लोकसभा – भाजपा प्रत्याशी संतोष पांडेय 44 हजार वोटों से जीते
बिलासपुर लोकसभा – भाजपा प्रत्याशी तोखन साहू एक लाख से ज्यादा वोटों से जीते
जांजगीर चांपा लोकसभा – भाजपा प्रत्याशी कमलेश जांगड़े 60000 वोटों से जीतीं
बस्तर लोकसभा – भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप 55245 वोटों से जीते
कांकेर लोकसभा – भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग 1974 वोटों से जीते
महासमुंद लोकसभा – भाजपा प्रत्याशी रूपकुमारी चौधरी 1,45,456 वोटों से जीतीं
रायगढ़ लोकसभा – भाजपा प्रत्याशी राधेश्याम राठिया 2,40,391 वोट से जीते
कोरबा लोकसभा – कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना महंत 40 हजार से ज्यादा वोट से जीते