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October 31, 2024 7:53 pm

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थाईलैंड की गुफा में 17 दिनों में हो गया था चमत्कार, भारत में 15 दिन बाद भी 41 मजदूरों का इंतजार, जानें वह वाकया

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Uttarakhand Tunnel Collapse: उत्तरकाशी में सिल्क्यारा सुरंग (Uttarkashi Tunnel Rescue Operation) में 12 नवंबर से फंसे 41 मजदूरों को बचाने के लिए युद्धस्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है. 41 मजदूरों को बचाने के लिए एसडीआरएफ, एनडीआरफ, आईटीबीपी जैसी एजेंसी के साथ-साथ सेना को भी मदद के लिए बुलाया गया है. देश-दुनिया के तमाम विशेषज्ञ इस रेस्क्यू ऑपरेशन में सहायता कर रहे हैं. आज इस ऑपरेशन का 16वां दिन है. इस बीच लोगों को थाइलैंड का वह हादसा याद आ रहा है जिसे दुनिया का सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन माना जता है.

मीडिया रिोपर्ट के अनुसार उत्तरकाशी में काम पर लगी टीम थाइलैंड की रेस्क्यू टीम से भी सहायता के लिए संपर्क में है. बता दें कि साल 2018 में थाइलैंड में हुए हादसे में जूनियर फुटबॉल टीम के कोच समेत 12 बच्चे एक गुफा में फंस गए थे. 12 बच्चों को बचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया गया, इस रेस्क्यू ऑपरेशन ने पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया.

पढ़ें- Uttarakhand Tunnel Collapse: सुरंग से मजदूरों को निकालने के लिए इन 6 प्लान पर चल रहा काम, यह एक बताई जा रही सबसे बेहतर

क्या हुआ था थाइलैंड में
यह घटना जून 2108 की है, 23 जून 2018 में थाईलैंड की जूनियर एसोसिएशन फुटबॉल टीम अपने कोच के साथ प्रैक्टिस में लगी थी. इसी दौरान उसने थाम लुआंग गुफा में प्रवेश किया. ये गुफा ना केवल लंबी थी बल्कि इसके आसपास के इलाकों में पानी भी था. हालांकि शुरूआत में इस गुफा में कोई खतरा नहीं था. लेकिन टीम के गुफा में प्रवेश करने के कुछ समय बाद बारिश शुरू हो गई और गुफा में पानी भर गया. इस कारण इससे बाहर नकिलने के सारे रास्ते बंद हो गए.

धीरे-धीरे गुफा में पानी भरने लगा. टीम के सदस्य एक हफ्ते से कहीं ज्यादा समय तक गुफा में फंसे रहे. इसके बाद लोगों ने उनके बचने की उम्मीद छोड़ दी. लेकिन रेस्क्यू दलों ने उम्मीद नहीं छोड़ी. पूरे 9 दिनों बाद दो ब्रिटिश गोताखोर गुफा के मुंह से भीतर की तरफ पहुंच सके. तभी उन्होंने पाया कि बच्चे पानी भरी गुफा में एक ऊंची चट्टान पर मौजूद हैं. इसके बाद असल रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ.

कैसे आए बाहर
17 दिनों तक यह रेस्क्यू ऑपरेशन चला. बचाव दल ने कई विकल्पों के बारे में सोचा. इसमें बच्चों को दूर से ही गोताखोरी की ट्रेनिंग देने की योजना भी शामिल थी. लेकिन यह काफी मुश्किल था. सबसे मुश्किल बात यह थी कि जुलाई आ चुकी थी और तेज बारिश शुरू हो जाती तो बचाव की सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाता, तो तेजी से काम शुरू हुआ.

अंदर का पूरा नक्शा बनाकर 18 बचाव गोताखोरों को बच्चों को निकालने के लिए गुफाओं में भेजा गया. लड़कों को खास वेटसूट पहनाया गया. आक्सीजन सिलेंडर लगाया गया. हर बच्चे को एक गोताखोर के साथ बांधा गया. हालांकि हर फंसे हुए सदस्य को निकालने में 6 से 8 घंटे लगे. 10 जुलाई तक मिशन पूरा हो गया. गुफा में फंसे 12 बच्चों समेत कोच सही-सलामत बाहर आ चुके थे.

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गुफा में कैसे जिंदा रहे बच्चे 
सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर बच्चे गुफा में इतने दिनों तक कैसै जिंदा रहे. तो इसका जवाब उस टीम के कोच इकापॉल चंथावॉन्ग हैं. वह पहले एक बौद्ध भिक्षु थे. इकापॉल चंथावॉन्ग करीब एक दशक तक अपना समय मठ में गुजार चुके हैं. इसी कारण उन्हें मुश्किल से मुश्किल हालात में जीना आता था. उन्होंने गुफा में फंसे बच्चों को भी इसकी ट्रेनिंग देनी शुरू की. वे उन्हें मेडिटेट करना सिखाते थे. साथ ही उन्होंने बच्चों को यह भी सिखाया कि कम सांस लेकर भी कैसे शरीर में ऑक्सीजन बनाई रखी जा सकती है.

Tags: Uttarkashi News, Uttrakhand

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Khabar Gatha
Author: Khabar Gatha

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